स्वास्थ्य ढांचे का पुनर्गठन देश मे समय की मांग

स्वास्थ्य ढांचे का पुनर्गठन देश मे समय की मांग

अली खान,  (स्वतंत्र लेखक एवं स्तंभकार), जैसलमेर, राजस्थान

- अली खान -
स्वतंत्र लेखक एवं स्तंभकार, जैसलमेर, राजस्थान

देश को मजबूत स्वास्थ्य ढांचे‌ की आवश्यकता

आज देश में कोविड-19 संक्रमण बड़ी तेजी के साथ आबादी को अपनी चपेट में ले रहा है।‌ 

आज दुनिया में सबसे ज्यादा कोरोना संक्रमित मरीजों की संख्या भारत में है। 

पिछले एक महीने में अदृश्य विषाणु ने जिस तरह से कोहराम मचाकर रखा है, इससे हमारे देश की लचर स्वास्थ्य सेवा‌ और इसका खस्ताहाल सामने आ गया है। 

स्वास्थ्य क्या है - आज देश में अफरा-तफरी का वातावरण है। यह अफ़रा-तफ़री स्वास्थ्य सेवाओं को लेकर हैं। आज अस्पतालों में कोई बैड के लिए भाग-दौड़ कर रहा है, तो कोई ऑक्सीजन के लिए।‌ यदि किसी को ऑक्सीजन मयस्सर हो रही है, तो वह कंधे पर उठाए घुम रहा है, क्योंकि अस्पताल पूरी तरह भर चुके हैं।‌ 

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आज हालात यह है कि श्मसान घाट पर शवों को लाइन में लगाया जा रहा हैं, अंतिम संस्कार के लिए प्रतीक्षा करनी पड़ रही है।‌ कहीं पर हालात यह सामने आये है कि शवों को जलाने के लिए लकड़ियों का टोटा पड़ रहा है।‌ 

इसी चलते गंगा नदी में लाशों का अंबार देखने को मिला है। कुछ दिन पहले एक वाकया सामने आया कि पुलिस कर्मियों ने लाश को जलाने के लिए पेट्रोल और टायरों का सहारा लिया। ऐसे में यह कहा जा सकता है कि देश में हालात बिलकुल भी सामान्य नहीं है। 

आज सरकारी आंकड़ों के मुताबिक हर दिन चार हजार से अधिक मौतें हो रही हैं। असल में यह आंकड़ा कितना है, इसके बारे कुछ कहा नहीं जा सकता।

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पिछले वर्ष कोरोना ने दस्तक जरूर दी थी, मगर कोविड-19 संक्रमण सिर्फ शहरों में फैला और ग्रामीण परिवेश इससे बचा रहा। लेकिन अबकी बार ऐसा नहीं हुआ, इस बार कोरोना वायरस शहरी क्षेत्रों में विकराल रूप धारण करने के साथ-साथ ग्रामीण आबादी में प्रवेश कर गया। 

ग्रामीण धरातल पर पांव पसारते वायरस ने स्वास्थ्य ढांचे की पोल खोल दी। बीमारू स्वास्थ्य सुविधाओं और चौपट व्यवस्था ने सरकारों की आंखें खोली हैं। कोरोना की सुनामी के आगे मजबूत स्वास्थ्य ढांचे के नामी दावे धराशायी हो गये। 

आंकड़ों के मुताबिक स्वास्थ्य विभाग में निजी क्षेत्र का दायरा बीते कुछ वर्षों में बढ़ा है।‌ दावा किया जाता रहा कि तमाम जरूरी सुविधाओं और आधुनिक उपकरणों से लैस निजी अस्पतालों की तरफ लोगों का झुकाव बढ़ा है, लेकिन कोरोना ने निजी अस्पतालों की सीमाओं के पार जाकर कोहराम मचाया है। ऐसे में सरकारी और निजी स्वास्थ्य विभागीय सेवाएं चरमरा गईं।

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आज दुनिया में स्वास्थ्य सेवाओं का ढांचा कैसा हो, यह आबादी और जरूरतों को देखकर तय किया जाता है। आज दुनिया के कई देशों का स्वास्थ्य ढांचा बेहतरीन है। मजबूत स्वास्थ्य ढांचा होने की मुख्य वजह अपनी जीडीपी का 2 से 5 प्रतिशत तक स्वास्थ्य सेवाओं पर खर्च किया जाना है। 

आज भारत में स्वास्थ्य सेवाएं लड़खड़ा रही है, ऐसे में जरूरत इस बात की है कि सकल घरेलू उत्पाद का कम से कम 2 से 5 फीसदी के मध्य स्वास्थ्य सेवाओं पर‌‌ खर्च किया जाए। आज हमारे देश में निजी स्वास्थ्य क्षेत्र बड़ी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। 

यहां अधिकाश स्वास्थ्य खर्च बीमा से होने के बजाय रोगियों और उनके परिवारों द्वारा ‌उनकी जेब से वहन किया जाता है। इसके चलते स्वास्थ्य खर्चों पर बहुत ही असामान्य व्यय करना पड़ता है।‌ इसका परिणाम यह होता है कि निम्न और मध्यम वर्ग बिना स्वास्थ्य सेवाओं के लाभ के जीवन बसर करता है, परिणाम स्वरूप जान को खतरे में डाल देता है। 

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ऐसे में इस सिस्टम में बदलाव का किया जाना भी जरूरी है। क्योंकि पंक्ति में सबसे पीछे के व्यक्ति को भी स्वास्थ्य का लाभ मिल सके। 

राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के अनुसार, निजी चिकित्सा क्षेत्र शहरी क्षेत्रों में रहने वाले परिवारों के 70 फीसदी और ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले परिवारों के 63 फीसदी के लिए स्वास्थ्य देखभाल के प्राथमिक स्रोत है। विभिन्न राज्यों के बीच सार्वजनिक और निजी स्वास्थ्य देखभाल में काफी अंतर हैं। कई कारणों से निजी स्वास्थ्य क्षेत्र पर निर्भरता बढ़ी हैं, जिनमें से एक प्रमुख कारण सार्वजनिक क्षेत्र में देखभाल की खराब गुणवत्ता का होना है। 

ऐसे में बड़ी आबादी की निर्भरता निजी अस्पतालो पर मजबूरन है।‌ निजी अस्पतालों में बीमा जैसी सुविधाएं उपलब्ध नहीं होती है।‌ गरीब और मध्यम वर्ग सरकारी अस्पतालों में सुविधा के अभाव में निजी अस्पतालों की ओर रुख करते हैं। यह देखा गया है कि निजी अस्पताल मनमाना पैसा वसूली करते हैं। ऐसे में सरकारी अस्पतालों की गुणवत्ता में सुधार बेहद जरूरी हो गया है।‌ सरकारी अस्पतालों के आधारभूत ढांचे में बदलाव निहायत ज़रूरी है। 

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आंकड़े बताते हैं कि डॉक्टरों की आबादी का केवल 2 फीसदी ग्रामीण ‌क्षेत्रों में रहता हैं, जहां भारत की 68 फीसदी आबादी निवास करती है। इन आंकड़ों में सुधार की सख्त दरकार है। इस बार कोरोना वायरस के गांवों में फैलने के कारण हालात नियंत्रण से बाहर हो गये। 

इसके पीछे बड़ी वजह स्वास्थ्य सुविधाओं का संगठित नहीं होना भी है। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के आंकड़ों से पता चला है कि भारत की शहरी आबादी के लिए उपलब्ध शिशु स्वास्थ्य सेवाएं बहुत अच्छी स्थिति में नहीं हैं। इसमें भी सुधार की गुंजाइश बनी हुई है।

आज देश भर में कोरोना ने जमकर कहर बरपाया है।‌ कोविड-19 महामारी से उपजी परिस्थितियों से सबक लेते हुए भविष्य के इंफ्रास्ट्रक्चर के लिए योजना बनाने की जरूरत है। आज कोविड-19 महामारी को नियंत्रित करने में एक भी राज्य ने पूर्णतया सफलता नहीं पाई है। 

जहां कहीं कोरोना संक्रमण नियंत्रण में आया है, वहां लॉकडाउन और बंदियों का सहारा लिया गया है। ऐसे में न केवल केन्द्र बल्कि राज्यों की सरकारों को गंभीरता से विचार करना चाहिए कि भविष्य में महामारी से निपटने में क्या कारगर उपाय हो सकते हैं।‌ आज हमारे पास तकनीकी शिक्षा की कोई कमी नहीं है, बस जरूरत इस बात की है कि‌ यथाशीघ्र स्वास्थ्य ढांचे को डिजीटाइजेशन किया जाये।‌ 

हमेशा से आवाज उठती रही है कि स्वास्थ्य सेवाओं की मजबूती के लिए विशेष प्रावधान किये जाने चाहिए। अब वह समय आ गया है, जहां सरकारी अस्पतालों के इंफ्रास्ट्रक्चर को बेहतर बनाया जाये, इसके लिए जीडीपी के कुल खर्च में स्वास्थ्य पर किये जाने वाले खर्चे को बढ़ाना होगा। 

आज ग्रामीण क्षेत्रों में पर्याप्त संख्या में चिकित्सकों की उपलब्धता नहीं है। ऐसे में आवश्यकता के अनुरूप चिकित्सक और मेडिकल स्टाफ की तैनाती होनी चाहिए। इसके साथ-साथ मेडिकल शिक्षा को भी बढ़ावा दिया जाना चाहिए। इसके लिए मेडिकल कॉलेजों की संख्या में इजाफा करने की जरूरत है।‌ हमारे देश का सबसे बड़ा दुर्भाग्य है कि यहां आपदा या महामारी आने के बाद सतर्कता देखने को मिलती हैं। यदि समय रहते प्रयास किये जाये, तो देश को बड़ी क्षति से बचाया जा सकता है।


नोट : लेख में लेखक द्वारा व्यक्त विचारों से आवाज ए हिंद टाइम्स समाचार का सहमत होना आवश्यक नहीं है।


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