कविता “मित्रता का अद्वितीय पर्याय" : श्री कृष्ण”

कविता “मित्रता का अद्वितीय पर्याय"

श्रीकृष्ण तो है मित्रता का अद्वितीय पर्याय।
सुदामा के कठिन समय में जो बने प्रतिक्षण सहाय॥
श्रीकृष्ण तो है मित्रता का मार्गदर्शक स्वरूप।
अप्रत्यक्ष रूप से भी जो निभाए सदैव सखा का रूप॥
मित्रता तो करती सुख-दु:ख को सहर्ष स्वीकार।

श्रीकृष्ण ने निभाई ऐसी मित्रता जिसकी होती जय-जयकार॥
मित्रता तो देती अपनेपन का हरपल एहसास।
सच्चे मित्र कभी नहीं बनाते अपने मित्र का उपहास॥
मित्रता निर्वहन में श्रीकृष्ण अपना भगवान स्वरूप भुला बैठे।
देवताओं में भय व्याप्त हो गया की कहीं सखा को तीनों लोक न दे बैठे॥
मित्रता नहीं जानती ऊच-नीच और जाति-पाती।


सच्चे मित्र तो अवगुण दूर कर देते केवल ख्याति॥
श्रीकृष्ण तो जानते थे सुदामा का अभाव।
पर सहज-सरल समर्पित मित्र का था उनका स्वभाव।।
 सच्चे मित्र तो करते अपना सर्वस्व समर्पित।
विषम परिस्थितियों में नहीं होने देते तनिक भी भ्रमित॥


मित्र से संवाद सुलझाते मन के अनेक विवाद।
मित्रता से तो बढ़ता जीवन जीने का स्वाद॥
डॉ. रीना कहती, जीवन में श्रीकृष्ण जैसा सखा बनाए।
जिसके होने से भवसागर की नैया भी तर जाए॥

डॉ. रीना रवि मालपानी (कवयित्री एवं लेखिका)


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