हर कंप्यूटर पर सरकार की नजर 10 एजेंसियों को जासूसी का जिम्मा
फैसले की चौतरफा अलोचना, सरकार फैसले पर कायम,
एनआईए, ईडी, सीबीआई, हॉ के हाथ में होगी कमान
आवाज़ ऐ हिन्द टाइम्स संवादाता, नई दिल्ली, दिसम्बर 2018, विपक्ष ने फैसले का एक सुर में किया विरोध। राज्यसभा में कांग्रेस के उपनेता आनंद शर्मा ने कहा है कि सरकार का यह कानून मौलिक अधिकारों के विपरीत है और व्यक्ति के निजता के अधिकारों पर हमले के समान है। उन्होंने कहा कि इससे लोकतंत्र के लिए खतरा पैदा हो गया है और पार्टी इसका विरोध करती है। समाजवादी पार्टी के रामगोपाल वर्मा ने कहा कि सरकार का यह आदेश खतरनाक है और इससे उसके तानाशाहीपूर्ण वैये का पता चलता है। उन्होंने कहा कि विधानसभा चुनाव में हार से बौखलाई। भाजपा सरकार ने यह कदम उठाया है। मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के नेता सीताराम येचुरी ने कहा कि सरकार हर आम आदमी के साथ अपराधी की तरह व्यवहार कर रही हैं। हर नागरिक की जासूसी करने वाला ये देश असंवैधानिक है और टेलीफोन टैपिंग के दिशा निर्देशों का उल्लंघन है।
कई तरह के नतीजे पैदा करने वाले एक बेहद गंभीर फैसले में सरकार ने 10 खुफिया व जांच एजेंसियों और दिल्ली पुलिस को “किसी भी कंप्यूटर में प्राप्त, संग्रहित या तैयार, ट्रांसमिट, 'किसी भी इनफार्मेशन को इंटरसेप्ट करने, इनको डिक्रिप्ट करने और निरीक्षण करने की इजाजत दी है। इस फैसले का विपक्षी पार्टियां जोरदार विरोध कर रही हैं। शुक्रवार को गृह सचिव राजीव गौबा की ओर से जारी आदेश के अनुसार, सूचना प्रौद्योगिकी (सूचना के इंटरसेप्शन, निगरानी और डिक्रिप्टेशन के लिए प्रक्रिया और सुरक्षा उपाय) नियम, 2009 के नियम अनुसार 4 के साथ पठित सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम 2000 की धारा 69 की उपधारा (1) की शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए उक्त अधिनियम के अंतर्गत संबंधित विभाग, खुफिया व सुरक्षा एजेंसियों को किसी भी कंप्यूटर में आदान - प्रदान किए गए रिसिव किए गए या स्टोर सूचनाओं को डिक्रिप्ट करने और इंटरसेप्ट, जांच-पड़ताल के लिए प्राधिकृत करता है।
यह 10 एजेंसियां खुफिया ब्यूरो, राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए), प्रवर्तन निदेशालय (ईडी), केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई), केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड, राजस्व खुफिया निदेशालय, कैबिनेट सेक्रेटरी (रॉ), डायरेक्टरेट ऑफ सिग्नल इंटिलिजेंस (सिर्फ जम्मू एवं कश्मीर, पूर्वोत्तर और असम के सेवा क्षेत्रों के लिए) और दिल्ली पुलिस आयुक्त हैं। अधिसूचना में साफ़ तौर पर कहा गया है कि किसी भी कम्प्यूटर जांच के आदेश पर संसद में हंगामा कंप्यूटर डाटा की जांच के गृह मंत्रालय के आदेश पर सफाई देते हुए सरकार ने आज राज्यसभा में कहा कि यह आदेश हर व्यक्ति के कंप्यूटर पर लागू नहीं होता और यह जांच केवल राष्ट्रीय सुरक्षा के संदर्भ में ही की जाएगी लेकिन इस दलील से असंतुष्ट विपक्ष ने सदन में जमकर हंगामा किया जिसके कारण सदन की कार्यवाही दिन भर के लिए स्थगित करनी पड़ी।
सब्सक्राइबर या संसाधन के प्रभारी सेवा प्रदाता इन एजेंसियों को सभी सुविधाएं और तकनीकी सहायता प्रदान करने के लिए बाध्य होंगे। इस संबंध में कोई भी व्यक्ति या संस्थान ऐसा करने से मना करता है तो उसे सात वर्ष की सजा भुगतनी पड़ेगी। सुबह भी विपक्ष के हंगामे के कारण सदन में कामकाज नहीं हो सका था। राज्यसभा में विपक्ष के नेता गुलाम नबी आजाद ने दस जांच एजेन्सियों को कंप्यूटर डाटा की जांच की अनुमति देने के गृह मंत्रालय के आदेश को काला कानून और
तानाशाही की संज्ञा देते हुए कहा कि यह देश में अघोषित आपातकाल लागू करने जैसा है। अधिसचना किसी एजेंसी को नए अधिकार नहीं देतीः गृह मंत्रालय किसी भी कंप्यूटर को भेदने, उसकी निगरानी या उसे डिक्रिप्ट करने का कई खुफिया व जांच एजेंसियों और दिल्ली पुलिस को कथित रूप से अनुमति देने के मामले में आलोचनाओं का सामना कर रहे केंद्रीय गृह मंत्रालय ने शुक्रवार को ही स्पष्टीकरण जारी किया। मंत्रालय ने कहा कि अधिसूचना किसी को भी नए अधिकार नहीं देती है और 'सभी अलग-अलग मामलों में मंत्रालय या राज्य सरकार की अनुमति लेने की जरूरत बनी रहेगी।' मंत्रालय के बयान के अनुसार, सूचना व प्रौद्योगिकी (आईटी) अधिनियम, 2000 में 'पर्याप्त सुरक्षा उपाय किए गए हैं और इसी तरह के प्रावधान और प्रक्रियाएं समान सुरक्षा उपायों के साथ टेलीग्राफ अधिनियम में पहले से मौजूद हैं।
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