सबसे दयनीय भारतीय कामगार महिलाओं की स्थिति 

आक्सफैम की रिपोर्ट - रोजगार क्षेत्र में होता है लिंग, धर्म और जाति का भेद



नई दिल्ली, मार्च। अंतरराष्ट्रीय संस्था आक्सफैम बताती है, कि भारत जैसे देश में आज भी महिला कामगारों की स्थिति सबसे दयनीय है। रोजगार के क्षेत्र में आज भी लिंग, धर्म और जाति का भेद किया जाता है। रिपोर्ट बताती है, कि समान काम के बाद भी महिलाओं को उतना वेतन नहीं दिया जाता, जिसकी वे हकदार हैं। 


महिलाओं की बदहाली का बड़ा कारण ग्रामीण इलाके में रोजगार की कमी, शहरी क्षेत्र के बढ़ते बदलाव, असमान वेतन, गैर भुगतान के देखभाल का बोझ और पिछड़ी सामाजित मान्यताओं के बने रहने को माना गया है। रिपोर्ट मानती है, कि देश की विकास दर 7 फीसद रहने के बाद भी रोजगार के क्षेत्र में उल्लेखनीय वृद्धि नहीं हुई है, रोजगार या तो असंगठित क्षेत्र में बढ़ा है या फिर संगठित क्षेत्र में अनैपचारिक स्तर पर, जिसके परिणाम स्वरुप अधिकांश भारतियों के सामने कम वेतन और असुरक्षित रोजगार एक बड़े संकट की तरह खड़ा है।


महिलाओं की स्थिति पर रिपोर्ट कहती है, कि समान कार्य के बाद भी महिलाओं को पुरुषों की तुलना में 34 फीसद कम भुगतान किया गया। साल 2015 में 92 फीसद महिला और 82 फीसद पुरुष 10 हजार रुपए से कम कमा रहे थे, जबकि केन्द्रीय वेतन आयोग ने न्यूनतम मजदूरी 18 हजार रुपए तय की है। रिपोर्ट बताती है, कि मुस्लिम महिलाएं घर पर चलने वाले रोजगार पर अधिक आश्रित हैं, अनुसूचित जातियों की महिलाएं निर्माण उद्योग व सफाई कायों में व अन्य जातियों की महिलाओं की उपस्थिति शिक्षा व स्वास्थ्य के क्षेत्र में अधिक है।


मात्र 10 उद्योग ऐसे हैं, जिनमें आधे से अधिक महिलाएं काम कर रही हैं. 7 में से 1 महिला शिक्षा के क्षेत्र में काम कर रही है। आक्सफैम की नीति अनुसंधान एवं अभियान की निर्देशक रेणु भोगल कहती हैं, कि पिछले कुछ वर्षों में हमने रोजगार सृजन के दावे तो बहुत सुने, पर गुणवत्ता के रोजगार उपलब्ध कराने की दिशा में ध्यान नहीं दिया गया।


इसके लिए जरुरी है, लोगों को अच्छी शिक्षा और स्वास्थ्य उपलब्ध कराया जाए, जिससे उन्हें गरीबी के दुष्चक्र से बाहर निकाला जा सके। आक्सफैम के सीईओ अमिताभ बेहार कहते हैं, कि कामगारों में बढ़ती असुरक्षा के लिए श्रम कानूनों की भूमिका की भी समीक्षा की गई है, जिसमें पाया गया, कि कामगारों की स्थिति काफी चिंताजनक है। ठेकेदारी परंपरा बढ़ने के प्रबंधन और मजदूरों के बीच भुगतान का अंतर काफी बढ़ गया है।


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