बिल तीसरी बार लोस से पास तीन तलाक को आपराधिक बनाने वाला

कांग्रेस-जदयू का वाकआउटपास बिल, संसद, विपक्ष के सभी संशोधन खारिज



अब राज्यसभा में जायेगा बिल, विधेयक के पक्ष में 303 व विपक्ष में 82 वोट पड़े


राम कुमार, नई दिल्ली, जुलाई। लोकसभा में गुरुवार को एक बार में तीन तलाक (तलाक-ए-बिद्दत) से संबंधित विधेयक पारित हो गया. मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) विधेयक-2019 के पक्ष में 303 और विपक्ष में 82 वोट पड़े. यह तीसरी बार है, जब विधेयक लोकसभा से पारित हुआ है, विपक्षी सांसदों द्वारा लाये गये सभी संशोधन खारिज हो गयेऔर यह विधेयक ध्वनिमत से पारित हो गया. अब सरकार इस विधेयक को इसी सत्र में राज्यसभा से पारित कराने की कोशिश करेगी.


विधेयक में तलाक-ए-बिद्दत को अपराध करार दिया गया है. साथ ही दोषी को जेल की सजा सुनाये जाने का भी प्रावधान है. इससे पहले फरवरी में यह विधेयक लोकसभा में पारित हुआ था, लेकिन राज्यसभा में यह अटक गया था. विधेयक पर चर्चा का जवाब देते हुए कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा कि इस विधेयक को सियासी चश्मे से नहीं देखा जाना चाहिए, यह इंसानियत, इंसाफ और मानवता से जुड़ा विषय है.


इसका धर्म से कोई लेना देना नहीं है. यह सियासत, धर्म और संप्रदाय का प्रश्न नहीं है, बल्कि यह नारी के सम्मान और नारी-न्याय का सवाल है. कांग्रेस पर हमला बोलते हुए प्रसाद ने कहा कि 1986 में शाहबानो केस में अगर वोट बैंक की राजनीति को लेकर कांग्रेस के पांव नहीं हिले होते, तो आज हमें इस विधेयक को लाने की जरूरत नहीं पड़ती. उन्होंने कहा कि तीन तलाक 20 इस्लामी देशों में यह निषिद्ध है, ऐसे चलन को कोई जायज नहीं ठहरा सकता. इससे पहले, जदयू, कांग्रेस, द्रमुक, सपा, बसपा, एनसीपी, नेशनल कॉन्फ्रेंस, वाइएसआर कांग्रेस और आरएसपी के सदस्यों ने सदन से वाकआउट किया.


विधेयक में ये हैं प्रावधान -



  • एक बार में तीन तलाक (तलाक ए-बिद्दत) को रद्द और गैर कानूनी बनाना

  • तीन तलाक को संज्ञेय अपराध माना जायेगा. बिना वारंट के गिरफ्तारी होगी

  • तीन साल तक की सजा

  • यह संज्ञेय तभी होगा, जब या तो खुद महिला शिकायत करे या फिर उसका कोई सगा-संबंधी.

  • मजिस्ट्रेट आरोपी को जमानत दे सकता है. जमानत तभी दी जायेगी, जब पीड़िता का पक्ष सुन लिया जाये और मजिस्ट्रेट को लगे किं जमानत का आधार है.

  • पीड़ित महिला के अनुरोध पर मजिस्ट्रेट समझौते की अनुमति दे सकता है.

  • पीड़ित महिला पति से गुजारा भत्ते का दावा कर सकती है. इसकी रकम मजिस्ट्रेट तय करेगा.

  • पीड़ित महिला नाबालिग बच्चों को अपने पास रख सकती है. इसके बारे में मजिस्ट्रेट तय करेगा.


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