सत्ता के 'सकारात्मकता अभियान' में रामदेव का पलीता

 सत्ता के 'सकारात्मकता अभियान'  में रामदेव का पलीतासत्ता के 'सकारात्मकता अभियान'  में रामदेव का पलीता देश के कई राज्यों से लॉक डाउन में छूट मिलने या 'अन लॉक' होने की ख़बरें भी आनी शुरू हो चुकी हैं। 

Tanveer Jafri ( columnist)

Tanveer Jafri ( columnist)

पूरा देश इस समय कोरोना मरीज़ों की गत अप्रैल -मई माह में निरंतर बढ़ती संख्या तथा इससे होने वाली बेशुमार मौतों के नियंत्रित होने की ख़बरें सुनकर राहत की सांस ले रहा है। 

ज़ाहिर है देश को विगत लगभग 2 महीनों तक अस्पतालों से लेकर शमशान घाट तक मची चीत्कार व इसके चलते समाज में फैल रही नकारात्मकता व अवसादपूर्ण वातावरण से बाहर निकलना ही था।

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सत्ता वाद क्या है?

सरकार व भारतीय जनता पार्टी के संरक्षक संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने तो पिछले दिनों बाक़ायदा 'हम जीतेंगे- 'पॉज़ीटिविटी अनलिमिटेड' के शीर्षक से एक चार दिवसीय व्याख्यान माला का आयोजन किया जिसमें देश की अनेक विशिष्ट हस्तियों ने इसी विषय पर अपने विचार रखे कि संकट की इस घड़ी में देश को सकारत्मक सोच की ओर कैसे ले जाया जाए। 

सत्ता के 'सकारात्मकता अभियान'  में रामदेव का पलीता 2

इसमें संघ प्रमुख मोहन भागवत सहित और भी कई विशिष्ट वक्ताओं ने यह महसूस किया कि कोरोना की दूसरी लहर से निपटने में सरकार से चूक हुई है। मोहन भागवत ने स्वयं अपने व्याख्यान में देश को एकजुट रहने व सकारात्मक सोच बनाए रखने की अपील की। सर संघ चालक ने कहा कि -'इस चुनौतीपूर्ण समय में एक दूसरे पर ऊँगली उठाने के बजाए हमें एकजुट रहने व एक टीम के रूप में काम करने की ज़रुरत है। 

भागवत ने कहा कि "हम इन हालात का सामना इसलिए कर रहे हैं क्योंकि पहली कोरोना लहर चली जाने के बाद सरकार,प्रशासन व जनता सभी लापरवाह हो गए थे। जबकि डॉक्टर्स द्वारा दूसरी लहर के संकेत बराबर दिए जा रहे थे। अब तीसरी लहर के संकेत  दिए जा रहे हैं परन्तु हमें डरना नहीं है,हम चट्टान की तरह एकजुट रहेंगे।"

सत्ता क्या है ?

परन्तु सरकार व सरकार के मातृ संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के इस सकारात्मकता अभियान को पिछले दिनों पलीता लगाने का सबसे बड़ा काम रामदेव द्वारा बार-बार किया गया। उन्होंने चिकित्सकों व विश्वमान्य उस चिकित्सा व्यवस्था को ही अपमानित करने व उसपर संदेह जताने का काम किया जिसकी क़ुर्बानियों व अथक प्रयासों के बल पर ही आज देश सकारात्मक सोच की ओर बढ़ने के लाएक़ हुआ है। 

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लाख परेशानियों, दुर्व्यवस्थाओं, कमियों, असुविधाओं तथा आवश्यक चिकत्सकीय संसाधनों की कमियों के बावजूद पूरा देश हमेशा उन डॉक्टर्स व उनसे जुड़े सभी चिकित्सा कर्मियों का कृतज्ञ रहेगा जिन्होंने अपनी जान को ज़ोख़िम में डाल कर पूरे देश को संकट व अवसाद से उबरने का रास्ता हमवार किया। 

यह वही एलोपैथी चिकित्सा से संबंधित डॉक्टर्स थे जिनपर गत वर्ष कोरोना काल की शुरुआती दौर में भारत सरकार ने भारतीय सेना के तीनों अंगों की तरफ़ से फूलों की वर्षा कराई थी। इन्हीं 'कोरोना वारियर्स' की हौसला अफ़ज़ाई के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आह्वान पर पूरे देश ने तालियां व थालियां बजाकर तो कभी टॉर्च व मोमबत्तियां जला कर इनके प्रति एकजुटता व कृतज्ञता  जताई थी।

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रामदेव को शायद यह सब तो याद नहीं रहा परन्तु उन्हें प्रधानमंत्री का 'आपदा में अवसर ' वाला सूत्र वाक्य ज़रूर याद रहा। और आपदा में अवसर की ही एक झलक उन्होंने उस समय दिखाई जबकि कॉरोनकाल में ही उनके द्वारा बाक़ायदा एक भव्य कार्यक्रम आयोजित कर परिवहन मंत्री नितिन गडकरी व स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन की मौजूदगी में कोरोनिल नमक कोरोना की तथाकथित दवाई को बाज़ार से परिचित कराया गया। 

इस 'कोरोनिल परिचय आयोजन' में जिस बैनर का प्रयोग किया गया वह पूरी तरह व्यवसायिक व मार्केटिंग की तर्ज़ पर आधारित था। परिवहन मंत्री नितिन गडकरी व स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन की उपस्थिति में उनके पीछे लगे इस बैनर पर लिखा था -'कोरोना की दवाई -पतंजलि ने बनाई, पतंजलि रिसर्च का वैज्ञानिक अनुसंधान -विश्व के 158 देशों के लिए बना वरदान। 

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इतना ही नहीं बल्कि  इस विशाल बैनर पर अंग्रेज़ी में यह भी लिखा था कि -Announcment of first evidence based medicine for covid -19 . (Copp-WHO GMP certified ) । इसके अतिरिक्त उस उद्घाटन बैनर को और अधिक प्रभावी बनाने के लिए उसपर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व रामदेव का एक साथ पतंजलि परिसर में भ्रमण करते हुए चित्र छापा गया था ताकि उनकी तथाकथित कोरोना उपचार की दवा पर जनता विश्वास कर सके। 

परन्तु इस तथाकथित दवा के उद्घाटन की ख़बर सार्वजनिक होते ही इंडियन मेडिकल एसोसिऐशन व  विश्व स्वास्थ्य संगठन सहित और भी कई संस्थाओं ने न केवल कोरोनिल की विश्वसनीयता पर सवाल खड़े कर दिए बल्कि इसे शोध विहीन व अनउपयोगी तक बता डाला और इसकी मान्यता व उपयोगिता से पल्ला झाड़ लिया। 

सवाल यह भी उठे कि आख़िर इस पूर्णतः व्यवसायिक व शोधविहीन आयोजन में देश के दो प्रमुख मंत्री गए ही क्यों। परन्तु चतुर व्यवसायी रामदेव इस आयोजन मात्र से ही बाज़ार में छलांग लगाने में सफल रहे। ख़बर है कि हरियाणा सरकार उनसे आधी क़ीमत पर कोरोआनिल ख़रीदने भी जा रही है।

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एक ओर तो कोरोना काल में रामदेव 'आपदा में अवसर' तलाशते हुए अपने कारोबार के विस्तार की संभावनाएं ढूंढ रहे थे तो ठीक उसी दौरान पूरी दुनिया का चिकित्सक वर्ग (एलोपैथी) कोरोना मरीज़ों से जूझता हुआ स्वयं कोरोनाग्रास्त होते हुए शहीद भी हो रहा था और साथ साथ इससे संबंधित वैक्सीन व दवाइयों को लेकर विश्वस्तरीय शोध व अनुसंधान भी जारी थे। 

बड़े पैमाने पर चल रहा भारत का वैक्सीनेशन अभियान इन्हीं चिकित्सा वैज्ञानिकों के शोध व श्रम का परिणाम है। तो दूसरी ओर व्यवसायी रामदेव अपने योग प्रशिक्षणार्थियों से इस अंदाज़ में बात कर रहे थे -" वैक्सीन की डबल डोज़ लेने के बावजूद एक हज़ार डाक्टर मर गए। 

जो अपने आप को नहीं बचा पाए वह कैसे डॉक्टर? डॉक्टर बनना हो तो स्वामी रामदेव जैसा बनो जिसके पास कोई डिग्री नहीं और सबका डॉक्टर है, without  any degree with dignity I am a doctor." इसके अलावा भी उन्होंने वर्तमान चिकित्सा पद्धति, वैक्सीन व दवाइयों पर कई सवाल खड़े किये। यहां तक कि स्वयं अशिक्षित होने के बावजूद उन्होंने शिक्षित व डिग्री धारक डॉक्टर्स के प्रति कई अपमानजनक शब्दों का भी प्रयोग किया।

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बहरहाल इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने रामदेव के ख़िलाफ़ मुक़ददमा ठोकने का निर्णय लिया है। पूरे देश के डॉक्टर्स ने रामदेव के विरुद्ध प्रदर्शन करने व काला दिवस मनाने का फ़ैसला किया। जबकि सत्ता संरक्षित रामदेव का कहना है कि उन्हें गिरफ़्तार करने की हिम्मत किसी के बाप में नहीं है। 

ऐसे हालात में दो सवाल ज़रूर उठते हैं कि जब सत्ता की ओर से कोरोना के भय व अवसादपूर्ण वातावरण में  'सकारात्मकता ' की मुहिम चलाई जा रही हो, जब देश और दुनिया का चिकित्सक वर्ग अपनी जान व परिवार की क़ुरबानी देकर आम लोगों को बचाने की कोशिशों में दिन रात लगा हो ऐसे समय में रामदेव के इन्हीं चिकित्सकों व इसी चिकित्सा पद्धति पर सवाल खड़े करना व इन्हें अपमानित करना सत्ता के सकारात्मकता अभियान में पलीता लगाना नहीं तो और क्या है। 

देश के लोगों को वैक्सीन व एलोपैथी चिकित्सा के प्रति भ्रमित करने जैसा घृणित अपराध करने के बावजूद रामदेव के प्रति सरकार की नरमी बरतने के आख़िर क्या मायने हैं ? दूसरा सवाल यह  भी है कि यदि एलोपैथी चिकित्सकों या चिकित्सा पद्धति के विषय में यही विचार व यही शब्द राहुल गांधी द्वारा व्यक्त किये गए होते तो क्या सरकार व गोदी मीडिया इसी तरह चुप्पी साधे रहते जैसे कि रामदेव के विषय में साधे हुए है?

नोट : लेख में लेखक द्वारा व्यक्त विचारों से आवाज ए हिंद टाइम्स समाचार का सहमत होना आवश्यक नहीं है।

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