इलेक्ट्रॉनिक नाक बीमारियों को सूंघने के लिए 

इलेक्ट्रॉनिक नाक की बात हो तो जानी-मानी बात है कि कुत्तों की सूंघने की क्षमता जबरदस्त होती है। मगर जिस इलेक्ट्रॉनिक नाक की बात हो रही है वह कुत्तों को सूंघने का काम करती है। यह इलेक्ट्रॉनिक नाक खास तौर से लेश्मानिएसिस नामक रोग से ग्रस्त कुत्तों को पहचानने के लिए विकसित की गई है।



इस रोग को भारत में कालाजार या दमदम बुखार के नाम से भी जाना जाता है। लेश्नानिएसिस एक रोग है जो कुत्तों और इंसानों में एक परजीवी लेश्मानिया की वजह से फैलता है और इस परजीवी की वाहक एक मक्खी (सैंड फ्लाई) है। मनुष्यों में इस रोग के लक्षणों में वज़न । घटना, अंगों की सूजन, बुखार वगैरह होते हैं।


कुत्तों में दस्त, वज़न घटना तथा त्वचा की तकलीफें दिखाई देती हैं। सैंड फ्लाई इस रोग के परजीवियों को कुत्तों से इंसानों में फैलाने का काम करती है। यह रोग ब्राजील में ज्यादा पाया जाता है और इसका प्रकोप लगातार बढ़ रहा है। इलेक्ट्रॉनिक नाक दरअसल वाष्पशील रसायनों का विश्लेषण करने का उपकरण है।


समें नमूने के वाष्पशील रसायनों के द्वारा उत्पन्न वर्णक्रम के आधार पर उनकी पहचान की जाती है। फिलहाल स्वास्थ्य विभाग के पास लेश्मानिएसिस की जांच के लिए जो तरीका है उसमें काफी समय लगता है। इलेक्ट्रॉनिक नाक इसमें मददगार हो सकती है। पिछले दिनों शोधकर्ताओं ने 16 लेश्मानिया पीड़ित कुत्तों और 185 अन्य कुत्तों के बालों के नमूनों पर प्रयोग किया।


इन बालों को एक पानी भरी थैली में रखकर गर्म किया गया ताकि इनमें उपस्थित वाष्पशील रसायन वाष्प बन जाएं। इसके बाद प्रत्येक नमूने का विश्लेषण इलेक्ट्रॉनिक नाक द्वारा किया गया। ई-नाक ने लेश्मानिएसिस पीड़ित कुत्तों की पहचान 95 प्रतिशत सही की। अब इसे और सटीक बनाने के प्रयास चल रहे हैं।


वैज्ञानिकों का मानना है कि जल्दी ही इलेक्ट्रॉनिक नाक रोग निदान का एक उम्दा उपकरण साबित होगा। उम्मीद तो यह है कि इसका उपयोग मलेरिया, मधुमेह जैसे अन्य रोगों की पहचान में भी किया जा सकेगा।


 


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