विधायकों की स्वीकृति जरूरी नहीं पेंशन में 

उच्च न्यायालय ने आनलाइन पेंशन आवेदन के निर्णय को किया बहाल 


नई दिल्ली, मार्च। दिल्ली उच्च न्यायालय ने मंगलवार को अपने फैसले में दिल्ली सरकार के निर्णय को निरस्त कर दिया है। हाई कोर्ट ने कहा है कि दिल्लीसरकार द्वारा सिर्फ विधायकों की संस्तुति अनिवार्य किए जाने केकारण बुजुर्गों को भारी परेशानी हो रही थी। इस कारण यह व्यवस्था समाप्त करके सरकारी पोर्टल पर जाकर पेंशन के लिए ऑनलाइन आवेदन को पुनः लागू कर दिया गया है।



अदालत ने कहा, दिल्ली सरकार द्वारा सिर्फ विधायको की संस्तुति
अनिवार्य किए जाने के कारण बुजुर्गों को भारी परेशानी हो रही थी।


इस पोर्टल पर जाकर कोई भी जरूरतमंद पेंशन के लिये आवेदन कर सकता है। यह जानकारी देते हुए केंद्रीय मंत्री डा हर्ष वर्धन ने कहा कि पारदर्शी व्यवस्था के लिए यह आदेश नजीर है। उन्होंने कहा कि जितने रुपये अरविंद केजरीवाल की दिल्ली सरकार ने जनता को गुमराह करने के लिए विज्ञापनों पर खर्च किए हैं यदि वही धन दिल्ली के सभी बुजुर्गों और बेसहारा विधवाओं, विक्लांगों को पेंशन देने में खर्च किए जाते तो इन सभी का जीविकोपार्जन हो जाता और उनकी दुआ भी मिलती।


डा. हर्ष वर्धन ने उच्च न्यायालय दिल्ली द्वारा ऑनलाइन पेंशन आवेदन के निर्णय की सराहना करते हुए कहा है कि यह व्यवस्था निष्पक्ष और पारदर्शी है। उन्होंने बताया कि दिल्ली सरकार ने एक योजना के तहत ऑनलाइन पेंशन बंद कर दी थी। समाज कल्याण विभाग के कार्यालय जाने पर जरूरतमंदों को यही जवाब मिलता था कि पेंशन के लिए क्षेत्रीय विधायक की संस्तुति अनिवार्य है। डा. हर्षवर्धन ने कहा कि इससे बुजुर्गों और विधवा महिलाओं को विधायक कार्यालय के बार-बार चक्कर लगाने पड़ते थे।


उनके साथ पेंशन देने में भेदभाव किया जा रहा था। आम आदमी पार्टी की सरकार बनने से पहले दिल्ली में कांग्रेस सरकार होने के दौरान वरिष्ठ नागरिकों का पेंशन आवेदन फार्म वेरिफिकेशन का बहाना लेकर पेंशन रोक दी गई थी।


पेंशन के लिए यह प्रावधान था कि क्षेत्रीय सांसद, क्षेत्रीय विधायक या किसी राजपत्रित अधिकारी द्वारा संस्तुति किए जाने पर ही जांच के बाद पेंशन जारी की जाती थी। अरविंद केजरीवाल की सरकार ने पेंशन के लिए सिर्फ क्षेत्रीय विधायक की संस्तुति अनिवार्य कर दी थी और अब इसे अदालत ने बदल दिया है।


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