भारत का परचम अंतरिक्ष में लहराया 

प्रॉजेक्ट कौटिल्य के तहत विकसित किया गया एमिसैट, 
सिग्नलों की जासूसी करना होगा आसान



श्रीहरिकोटा (आंध्रप्रदेश), अप्रैल। भारत को ‘मिशन शक्ति' के बाद अंतरिक्ष में सोमवार को उस समय एक और बड़ी सफलता मिली जब भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने पहली बार तीन विभिन्न कक्षाओं में उपग्रहों को स्थापित करने के लिए पीएसएलवी-सी 45 से प्राथमिक उपग्रह एमिसैट के साथ 28 विदेशी नैनो उपग्रहों को सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से अंतरिक्ष में छोड़ा और 17 मिनट के अंदर एमिसैट अपने कक्षा में स्थापित हो गया तथा करीब 100 मिनट के भीतर सभी विदेशी उपग्रह भी कक्षा में स्थापित कर दिए गए।


आधिकारिक सूत्रों ने बताया कि धुव्रीय उपग्रह प्रक्षेपण वाहन पीएसएलवी-45 अपने 47 वें अभियान के तहत दूसरे लांच पैड से सुबह नौ बजकर 27 मिनट पर उड़ान भरी। एमिसैट का वजन 436 किलोग्राम हैं और इसका मकसद विद्युत चुंबकीय स्पैक्ट्रम को मापना है।


यह डीआरडीओ का इलैक्ट्रानिक इंटेलीजेंस उपग्रह है और 28 नैनो उपग्रह लिथुआनिया, स्पेन, स्विट्जरलैंड तथा अमेरिका के हैं जिनका प्रक्षेपण वाणिज्यिक कार्यक्रम के तहत किया गया। पहले यह प्रक्षेपण 21 मार्च को किया जाना था लेकिन सफल प्रक्षेपण के लिए आंतरिक प्रणाली को पूरी तरह तैयार करने के लिए इसे आगे बढ़ा दिया गया था। यह इसरो का तीन कक्षाओं वाला पहला अभियान है और चौथे चरण के इंजन में सौर पैनल का पहली बार इस्तेमाल किया गया।


जासूसी में मददगार बनेगा एमिसैट -


एमिसैट के महत्व का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि भारत सरकार ने इसके बारे में बहुत ज्यादा जानकारी सार्वजनिक नहीं की है। सूत्रों के अनुसार एमिसैट इजरायल के जस्सी उपग्रह सरल से मिलता जुलता है।


एमिसैट रेडार की ऊंचाई को नापने वाला डिवाइस एलटिका लगा है जिसे डीआरडीओ के प्रॉजेक्ट कौटिल्य के तहत विकसित किया गया है। इस उपग्रह की सबसे बड़ी खासियत सिग्नल की जासूसी करना है।


इसका मुख्य काम आसमान पर रहते हुए यह जमीन पर मौजूद संचार प्रणालियों, रेडार और अन्य इलेक्ट्रानिक उपकरणों से निकले सिग्नल को पकड़ना है।


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