खतरे में न्यायपालिका की स्वतंत्रता : मुख्य न्यायाधीश

मुख्य न्यायाधीश पर महिला ने लगाया
यौन उत्पीड़न का आरोप



आवाज़ ए हिंद टाइम्स सवांदाता, नई दिल्ली, अप्रैल। अपने ऊपर लगे यौन उत्पीड़न के आरोपों को खारिज करते हुए भारत के प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई ने शनिवार को कहा कि न्यायपालिका की स्वतंत्रता खतरे में है और इसे अस्थिर करने के लिए बड़े पैमाने पर षड्यंत्र रचा जा रहा है।


आरोपों से जुड़े मामले की तत्काल सुनवाई करते हुए प्रधान न्यायाधीश गोगाई, न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा और न्यायमूर्ति संजीव खन्ना की तीन सदस्यीय पीठ ने मीडिया से 'संयम, जिम्मेदारी और बुद्धिमत्ता से काम करने के लिए कहा कि ताकि न्यायपालिका की छवि इन आधारहीन आरोपों से धूमिल न हो न्यायाधीश गोगोई ने कहा कि जब तक मेरा कार्यकाल पूरा नहीं होता। मैं इस पीठ में बैठूँगा और बिना डरे और निष्पक्षता के साथ अपना कर्तव्य निभाऊंगा।


न्यायपालिका को बलि का बकरा नहीं बनाया जा सकता, मीडिया के एक धड़े में इस तरह के आरोपों के बारे में प्रकाशित रिपोट्र्स पर टिप्पणी करते हुए उन्होंने कहा कि चीजें बहुत दूर चली गई हैं। एक न्यायपालिका को बलि का बकरा नहीं बनाया जा सकता.. आपराधिक रिकॉर्ड वाली महिला के पीछे बहुत बड़ी ताकत है।


न्यायपालिका को अस्थिर करने की एक बड़ी साजिश रची जा रही है, जो कि अब तक स्वतंत्र बना हुआ है, प्रधान न्यायाधीश ने सवाल किया, इस तरह के आधारहीन आरोपों को देखते हुए, क्यों कोई व्यक्ति न्यायाधीश बनना चाहेगा। उन्होंने कहा कि न्यायाधीशों के पास केवल प्रतिष्ठा ही है, और उस पर भी हमला किया जा रहा है।


सर्वोच्च न्यायालय के प्रशासन ने कहा कि ये आरोप पूरी तरह से झूठे और अपमानजनक हैं और इन्हें पूरी तरह खारिज किया जाता है। न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर हुई विशेष सुनवाई - सार्वजनिक महत्व के एक मुद्दे पर विशेष सुनवाई हुई । मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता में गठित एक पीठ ने न्यायपालिका की स्वतंत्रता से जुड़े इस मुद्दे परने सुनवाई की। 


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