फेसबुक, व्हाट्सएप, फेक न्यूज की फैक्ट्री बन गए हैं 

समाधान से कोसों दूर सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म अभी भी


पेज ग्रुप्स और खातों के नाम बदले चुनावी एजेंडा को आगे बढ़ने के लिए



नई दिल्ली, अप्रैल। दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश में चुनाव से मुश्किल से एक सप्ताह पहले फेसबुक और इसके अधिग्रहण वाले व्हाट्सएप पर फेक न्यूज की फैक्ट्रियां अभूतपूर्व तरीके से सक्रिय हो गई हैं। फेसबुक इसके समाधानों के लिए बुरी तरह प्रयास कर रहा है लेकिन वह समाधान से कोसों दूर है। 


फेसबुक का काम अन्य मीडिया प्लेटफॉर्स से अलग है क्योंकि चुनाव में मांग के अनुसार चुनावी एजेंडा को आगे बढ़ाने के लिए पेज, ग्रुप्स और खातों के नाम बदल दिए गए हैं।


सोशल मीडिया एक्सपर्ट्स के अनुसार, राजनीतिक अभियानों को बढ़ावा देने और मतदाताओं को प्रभावित करने के लिए फेसबुक पेजों और ग्रुपों के नाम बदलना आम बात हो गई है और आर्टीफीशियल इंटेलीजेंस (एआई) चालित एल्गोरिद्म इतनी बड़ी संख्या को संभालने में सक्षम नहीं हैं जिस देश से ज्यादा फॉलोवरों वाले लगभग 200 ग्रुप और पेज सक्रिय हैं जो अपने पक्षपाती राजनीतिक कंटेंट से वर्तमान में ग्रुप के सदस्यों और फॉलोवरों को प्रभावित कर रहे हैं।


कुछ फर्जी प्रोफाइल पेज भी हैं जिन्हें रवीश कुमार (आई सपोर्ट रवीश कुमार) और पुण्य प्रसून बाजपेयी (प्रसून वाजपेयी फैन्स) जैसे पत्रकारों के प्रशंसकों ने अपने राजनीतिक एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए बनाया है। इन पेजों पर 10 लाख के आसपास फॉलोवर हैं।


कई ऐसे उदाहरण भी हैं जिनमें फेसबुक पर लोग सिर्फ अपने राजनीतिक एजेंडे का फैलाने के लिए अपने फेसबुक पेज, ग्रुपों और बाद में अपना प्रोफाइल नाम तक बदल देते हैं। फेसबुक की कोशिशों के बावजूद ऐसी गलत सूचनाएं धड़ल्ले से जारी हैं और व्यापक स्तर पर फैलने वाली हैं क्योंकि पहले चरण के मतदान 11 अप्रैल को हो रहे हैं।


देश के प्रमुख साइबर कानून विशेषज्ञ पवन दुग्गल ने आईएएनएस से कहा कि सोशल मीडिया पर रणनीति बनाने वालों के लिए भारत बहुत बड़ा बाजार है और वे आगे बढ़ना चाहते हैं। वहीं वे अपने प्लेटफॉर्मुस पर फर्जी खबरों और प्रचार को फैलने से रोकने में लगातार असफल हो रहे हैं। भारत में फेसबुक ने कई फर्जी पेज और अकाउंट्स बंद कर दिए जो सीधे तौर पर राजनीतिक दलों से जुड़े हुए थे।


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