भारत ईरान पर अमेरिकी पाबंदी की अनदेखी नहीं कर सकता 

नई दिल्ली, जुलाई, राम कुमार। ईरान के तेल निर्यात पर अमेरिकी पाबंदी से भारत की मुश्किलें बढ़ गई हैं, क्योंकि अपनी जरूरत का अधिकांश कच्चा तेल वह तेहरान से ही आयात करता है। हालांकि, पिछले साल जब अमेरिका ने ईरान परमाणु समझौते से खुद को अलग कर उसपर दोबारा प्रतिबंध लगाया था तो विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने कहा था, 'भारत केवल संयुक्त राष्ट्र की पाबंदियों का पालन करता हैऔर वह किसी देश द्वारा लगाई गई एकपक्षीय पाबंदी का पालन करने के लिए बाध्य नहीं है।'



पिछले दिनों अमेरिका ने ईरान से तेल आयात को लेकर भारत सहित आठ देशों को प्रतिबंध से मिलने वाली छूट की अवधि बढ़ाने से इनकार कर दिया, जिसके बाद हमें ईरान से तेल आयात में कटौती को मजबूर होना पड़ा। बड़ा सवाल यह है कि सुषमा के बयान के बाद ऐसी क्या मजबूरियां हैं, जिनकी वजह से अमेरिकी पाबंदियों का पालन करने के लिए भारत मजबूर है? आइए विस्तार से इसका अध्ययन करते हैं।


पाबंदी से बढ़ती हैं मुश्किलें -


पिछली पाबंदियों के दौरान भारत ने ईरान के साथ कारोबार को बरकरार रखा, हालांकि उसे तेल के आयात में कटौती करनी पड़ी है। इसका कारण ट्रांजैक्शंस के लिए बैंकिंग चैनलों का बंद होना और तेल ढोने वाले टैंकरों को इंश्योरेंस कवर न मिल पाना है। दरअसल, प्रतिबंध के दौरान सेंट्रल बैंक ऑफ ईरान विदेशी वित्तीय संस्थानों के साथ ट्रांजैक्शंस नहीं कर सकता है।


केवल तेल का ही खेल नहीं -


आठ देशों को ईरान से तेल आयात पर पाबंदी से मिली छूट को खत्म करते हुए । अमेरिका ने भारत को संबोधित करते हुए कहा कि पुलवामा में आतंकवादी हमले के बाद और संयुक्त राष्ट्र में मसूद अजहर को आतंकवादी घोषित करने के मामले में वह दिल्ली के साथ खड़ा रहा है, इसलिए उसे उम्मीद है कि वह ईरान के मसले पर उसका समर्थन करेगा। भारत-अमेरिका के संबंधों में कई और पेच हैं, जिनपर ईरान से तेल। आयात पर भारत के रुख का असर पड़ सकता है। इनमें व्यापार संबंधी मुश्किलें, रूस के साथ भारत का रक्षा सौदा और अफगानिस्तान शांति वार्ता में पाकिस्तान की भूमिका जैसे मुद्दे हैं।


मुद्दा केवल अमेरिका ही नहीं -


जब किसी पाबंदी (परमाणु हथियारों के प्रसार को रोकने के लिए) के प्रति अधिकतर देशों में व्यापक सहमति हो तो भारत द्वारा इसे नजरअंदाज करना बेहद मुश्किल काम है। साथ ही, भारत के साथ कारोबार करने वाले देशों पर अमेरिकी दबाव से ईरान के साथ कारोबार करने वाली भारतीय कंपनियों व संस्थानों के लिए चीजें और मुश्किल हो सकती हैं।


कुछ फायदे भी हैं?


ईरान पर प्रतिबंध का पालन करने के बदले में अमेरिका से भारत अन्य क्षेत्रों में छूट की मांग कर सकता है। हालांकि, ईरानी तेल का सबसे बड़ा खरीदार होने के नाते भारत को नुकसान ही है, क्योंकि यहां का तेल उसे सबसे सस्ता पड़ता है। लेकिन अमेरिका को सबसे बड़ा फायदा यह है कि वह अपना अधिक से अधिक तेल बाजार में पहुंचा सकता है। भारत के तेल आयात में अमेरिकी तेल की हिस्सेदारी महज तीन फीसदी है।


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