गांधी परिवार को आईना दिखाने वाले दिग्गजों की लिस्ट लम्बी होती जा रही

केंद्रीय मंत्री सलमान खुर्शीद ने यह कहकर कांग्रेस में हलचल बढ़ा दी है कि अगर हमें सफल होना है तो भाजपा की तरह सोच बड़ी करनी होगी। 

गांधी परिवार को आईना दिखाने वाले दिग्गजों की लिस्ट लम्बी होती जा रही

संजय सक्सेना, लखनऊ, स्वतंत्र पत्रकार

संजय सक्सेना, लखनऊ,
स्वतंत्र पत्रकार

लखनऊ, उत्तर प्रदेश ही नहीं केन्द्र की सियासत में भी अपनी धमक रखने वाले कांग्रेस के कद्दावर नेता और गांधी परिवार के सबसे अधिक विश्वासपात्र पूर्व केंद्रीय मंत्री सलमान खुर्शीद ने यह कहकर कांगे्रस में हलचल बढ़ा दी है कि अगर हमें सफल होना है तो भाजपा की तरह सोच बड़ी करनी होगी। फिर से मजबूत होने की राह में आगे बढ़ने के लिए सबसे पहले निराशावादी सोच छोड़नी होगी। 

खुर्शीद ने यह बात एक साक्षात्कार में कही है-

यह बात दिमाग से निकालनी होगी कि हमारा संगठन छोटा और कमजोर हो गया है, वह खोई ताकत फिर से प्राप्त नहीं कर सकता। खुर्शीद ने यह बात एक साक्षात्कार में कही है जो सोलह आने सच है,परंतु समस्या यही है कि जो गांधी परिवार भारतीय जनता पार्टी के नाम से नफरत करता है,वह यह बात कैसे बर्दाश्त कर सकता है कि उसे कोई यह नसीहत दे कि उसे भाजपा की तरह सोचना चाहिए। इसी लिए कुछ कांगे्रसी खुर्शीद पर हमलावर हो गए हैं तो बड़े नेताओं ने इसे कांगे्रस में सबको अपनी बात कहने का हक है, बता कर पल्ला झाड़ लिया है।

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बाॅटला एनकांउटर की खबर- 

सलमान खुर्शीद को कौन भूल सकता है। वही खुर्शीद साहब जिन्होंने सितंबर 2008 में दिल्ली के बाॅटला हाउस एनकांउटर में मारे गए आतंकवादियों के प्रति सहानुभूति दर्शाते हुए यहां तक कह दिया था कि बाॅटला एनकांउटर की खबर देख कर कांगे्रस अध्यक्ष और यूपीए की चेयरपर्सन सोनिया गांधी बहुत भावुक हो गईं थी और रोने लगी थीं। कांगे्रसियों ने एक सुर मेें बाॅटला हाउस एनकांउटर को फर्जी करार दे दिया था। उस समय केन्द्र में मनमोहन सिंह की सरकार थी और दिल्ली पुलिस केन्द्र के अधीन आती थी,लेकिन क्योंकि सोनिया के आंसू निकल आए थे,इसलिए मनमोहन सरकार ने भी हकीकत से पर्दा हटाने की बजाए चुप्पी साध ली।

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दरअसल, 13 सितंबर, 2008 को राजधानी दिल्ली के अलग-अलग स्थानों पर आतंकवादियों द्वारा बम विस्फोट किए गए थे, जिसमें 39 लोगों की मौत और 150 से ज्यादा लोग   घायल हुए थे। पुलिस ने चार्जशीट में ये बात लिखी थी। 19 सितंबर, 2008 को  आतंकियों को गिरफ्तार करने बाटला हाउस पहुंची पुलिस के साथ आतंकवादियों की मुठभेड़ हो गई जिसमें दो आतंकी ढेर हो गए थे। एक आतंकी ने आत्मसमर्पण किया था। दो आतंकी फरार हो गए थे।  इस दौरान पुलिस के एक इंस्पेक्टर मोहन चंद शर्मा शहीद हो गए थे। पुलिसकर्मी बलवंत गोली लगने से घायल हो गए थे। बाद में 2 फरवरी, 2010 को आरोपी शहजाद को उत्तरप्रदेश पुलिस ने गिरफ्तार किया था।

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30 जुलाई, 2013- अदालत ने आतंकी शहजाद को मोहन चंद शर्मा की हत्या व अन्य जुर्म में उम्रकैद की सजा। साथ ही 50 हजार रुपये का जुर्माना किया गया।  वहीं 13 फरवरी, 2018 को स्पेशल सेल ने फरार चल रहे दूसे आतंकी आरिज खान को भी नेपाल-भारत सीमा के पास से गिरफ्तार कर लिया था। इसके बाद चली लम्बी कानूनी कार्रवाई के बाद 8 मार्च, 2021 का साकेत कोर्ट के अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश संदीप यादव ने आरिज खान को दोषी ठहराते हुए 15 मार्च, 2021 को साकेत कोर्ट  आरिज खान को फांसी की सजा, 10 लाख का जुर्माना लगाया था। इसके बाद भारतीय जनता पार्टी ने सोनिया गांधी और सलमान खुर्शीद पर जमकर हमला करते हुए सोनिया से देश से मांफी मांगने तक की बात कही थी।

तुष्टिकरण की राजनीति - 

खैर, यह अतीत की बात है,लेकिन यह भी सच है कि कांग्रेस और गांधी परिवार की तुष्टिकरण की राजनीति के चलते ही जनता ने उसे ठुकरा दिया है। वह इतिहास के सबसे बुरे दौर से गुजर रही है,लेकिन गांधी परिवार बदलने को तैयार ही नहीं है। बार-बार गैर गांधी अध्यक्ष की बात करने वाला यह परिवार अध्यक्ष की कुर्सी पर ऐसे चिपका हुआ है,जैसे फैवीकोल लगा दिया गया हो। सोनिया गांधी जब खराब सेहत के चलते कहीं आने-जाने में अक्षम हैं तब उन्हंें पार्टी का कार्यवाहक अध्यक्ष बना दिया गया है। 

पांच राज्यों के चुनाव में पार्टी की अध्यक्ष सोनिया गांधी ने एक भी जनसभा नहीं कि इससे भी यह समझा जा सकता है कि सेानिया गांधी सििक्रय राजनीति से धीरे-धीरे दूर होती जा रही हैं,लेकिन पुत्र मोह के चलते वह पार्टी की बागडोर किसी और को नहीं सौंपना चाहती है। वह मौके की तलाश में है कि कब मौका मिले और राहुल को एक बार फिर पार्टी अध्यक्ष की कमान सौंप दी जाए। ऐसे में गांधी परिवार दूसरों की बात सुनेगा यह अपेक्षा नहीं की जा सकती है।खुर्शीद ने कहा, उनका मानना है भाजपा ने यही किया। 

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वह बड़ी सोच के साथ रणनीति बनाकर चली -

यह रणनीति वहां के लिए बनाई-जहां वे थे ही नहीं। उन्होंने प्रयास किए-कई स्थानों पर उन्हें सफलता मिली। इसलिए हमें निराशावादी सोच छोड़कर प्रयास करने की जरूरत है। जब मन में आत्मविश्वास पैदा कर सही तरीके से प्रयास करेंगे तो सफलता जरूर मिलेगी।  खुर्शीद को लगता है कि कांगे्रस पाटी्र को बंगाल के उन इलाकों में हुई चतुराई पूर्ण मतदान (टैक्टिकल वोटिंग) का विश्लेषण करने की जरूरत है। जहां पर कांग्रेस और वामपंथी गठबंधन पूरी तरह से साफ हो गया। एक विश्लेषक ने माना है कि जिस तरह की टैक्टिकल वोटिंग बंगाल में हुई वैसी असम में नहीं हुई। भविष्य में वोटिंग का अगर यही ट्रेंड बरकरार रहता है, तो हम क्या करेंगे। इसके बारे में हमें अभी से सोचना होगा। हमें अपने सहयोगी दलों के बारे में भी सोचना होगा, जिनके साथ मिलकर हम चुनाव लड़े थे।

बहरहाल, खुर्शीद की बात सही है,लेकिन हकीकत यह भी है कि सलमान पहले ऐसे नेता नहीं है जिंन्होंने गांधी परिवार को ‘नसीहत’ दी है। सलामन से पूर्व आनंद शर्मा,गुलाम नबी आजाद,मनीष तिवारी,कपिल सिब्बल,संजय झा, संजय निरूपम जैसे तमाम नेता भी पार्टी आलाकमान को आईना दिखा चुके हैं,कई नेता तो विरोध में कांगे्रस से किनारा भी कर चुंके हैं इसकी सबसे ताजा मिसाल असम के नवनिुयक्त मुख्यमंत्री  हिमंत बिस्वा सरमा हैं जो कभी कांगे्रस में हुआ करते थे, वह एक बार दिल्ली राहुल गांधी से मिलने आए राहुल उनके मिलने की बजाए अपने कुत्ते को बिस्कुट खिलाते रहे। 

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इतना ही नहीं राहुल ने कुत्ते को बिस्कुट खिलाने वाली फोटो भी शेयर कर दी,इससे नाराज होकर इस नेता ने कांगे्रस को छोड़ दिया और भाजपा सरकार मेें मुख्यमंत्री है, लेकिन इन बातों से गांधी परिवार पर फर्क नहीं प़ता है उसकी सोच का तंग दायरा किसी भी तरह की नई सोच में आड़े आ जाता है। खासकर राहुल गांधी सबसे अधिक नाकारा साबित हो रहे हैं। वह बीजेपी से विचारधारा की लड़ाई नहीं लड़ते हैं,बल्कि हर समय मोदी की इमेज खराब करने मंे लगे रहते है। 

यहां तक की वह एक बार साक्षात्कर देते समय वह कह भी चुके हैं मोदी को हराना है तो उनकी छवि धूमिल करना होगी,परंतु दुख की बात यह है कि राहुल जितनी कोशिश मोदी की छवि धमिल करने में लगाते हैं,मोदी का कद उतना ही बढ़ता जा रहा है और राहुल जनता के बीच हंसी का पात्र बनते रहते हैं। राहुल वह शख्स हैं जो नाकामियों से भी सबक नहीं लेता है। इसी के चलते कांगे्रस में गांधी परिवार को चुनौती देने वाले दिग्गजो की लिस्ट लगातार लम्बी होती जा रही है। 


(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।) 

                                                              

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