अध्यापक नए निर्देश के विरोध में 

नाराजगी - शोधार्थियों की स्वतंत्रता पर बताया सीधा हमला



सभी अकादमिक, बुद्धिजीवी समाज को ध्यान में रखना होगा कि शोध करना स्वेच्छिक भावना के तहत होता है और विषय का चुनाव स्वतंत्र रूप में होना चाहिए : प्रो. सुमन


नई दिल्ली, मार्च। केंद्रीय विश्वविद्यालयों के उपकुलपतियों की बैठक के बाद शोध कार्य पर आए नए निर्देशों का टीचर्स ने विरोध शुरू कर दिया है। यूजीसी, एमएचआरडी ने केंद्रीय विश्वविद्यालयों द्वारा संकेतित समझौता ज्ञापन सभी आधार स्तरों को लागू करने को कहा है। इस कड़ी में केरल केद्रीय विश्वविद्यालय को सर्कुलर जारी कर कहा है कि अभी इसे केरल विश्वविद्यालय में लागू करे।


बाद में सभी विश्वविद्यालयों में लागू होगा लेकिन अभी केरल केद्रीय विश्वविद्यालय में लागू करने को कहा गया है जिसकी कड़ी आलोचना करते हुए इसे शोधार्थियों की स्वतंत्रता पर सीधा हमला बताया है।


ऑल इंडिया यूनिवर्सिटीज एंड कॉलेजिज एससी, एसटी, ओबीसी टीचर्स एसोसियेशन ने टीचर्स के नेशनल चेयरमैन व पूर्व विद्वत परिषद सदस्य प्रो. हंसराज 'सुमन' ने बताया है कि पिछले दिनों केरल केंद्रीय विश्वविद्यालय में हो रहे शोध कार्यों को ध्यान में रखकर सभी कुलपतियों की एक बैठक शास्त्री भवन में बुलाई गई थी जिसमे एमएचआरडी/यूजीसी की तरफ से आदेश दिया, जिस तरह से केरल विश्वविद्यालय में शोध कार्य स्वतंत्र रूप से चल रहा है और पीएचडी के शोध छात्र स्वतंत्र रूप से अपने विषय का चुनाव कर रहे थे जो कि अकादमिक संस्थानों में स्वभाविक है।


इस बात के आधार पर एमएचआरडी/यूजीसी ने यह निर्णय लिया कि यदि विश्वविद्यालय स्तर पर शोध कार्य राष्ट्रीय महत्व के विषयों पर नहीं होता है तो ऐसे विद्यार्थियों को हतोत्साहित किया जाए और विभाग प्रभारियों की बैठक बुलाकर राष्ट्रीय महत्व के विषय पर एक परियोजना तैयार करे और शोध छात्रों को उसी में से विषय आबंटित किया जाए तो यह एक उदाहरण हो सकता है, हालांकि यह देश के सभी विश्वविद्यालयों पर लागू नहीं है किंतु आने वाले दिनों में ये राष्ट्रीय महत्व की बात करना अपनी राजनीतिक मनसा हो सकती है जो कि अन्य विश्वविद्यालयों में भी लागू किया जा सकता है।


प्रो. सुमन ने कहा कि सभी अकादमिक, बुद्धिजीवी समाज को ध्यान में रखना होगा कि शोध करना स्वेच्छिक भावना के तहत होता है और विषय का चुनाव स्वतंत्र रूप में होना चाहिए, इस तरह के दवाब शोध को हतोत्साहित करने वाले हैं और शोध की प्रक्रिया से पूर्व ही प्रतिबंध लगाने की बजाय शोध परिणामों को ध्यान में रखकर उस पर दिशा निर्देश ज्ञापित किए जाने हैं।


यदि शोध आतंकवाद से प्रेरित है या राष्ट्र के विखंडन की बात करता है तो उसके परिणाम पर प्रतिबंध लगाया जाए या नहीं तब चर्चा हो सकती हैलेकिन ऐसा करना उच्च शिक्षा की स्वतंत्रता हनन है और यह देश के हित में नहीं हो सकता।


उन्होंने कहा कि शोध की स्वतंत्रता हर शोध छात्र को होनी चाहिए और सत्ता पक्ष को यह छूट नहीं होनी चाहिए कि वह राष्ट्र हित को अपनी सत्ता हित से जोड़े क्योंकि राष्ट्र हित सत्ता हित नहीं बल्कि समाज हित है और इस पर अकादमिक जगत में चर्चा होनी चाहिए ना कि सत्ता के गलियारों में।


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