एप पर उपलब्ध, ओपीडी, ब्लॉक, वार्ड की जानकारी
तीमारदारों को दिखाएगा राह, दिल्ली एम्स की 400 तस्वीरें
नई दिल्ली। अगर आप कभी दिल्ली एम्स में अपना या किसी और का उपचार कराने गए होंगे तो आप भलीभांति जानते हैं कि एम्स परिसर में कागज बनवाने से लेकर डॉक्टर से सलाह और ब्लड सैंपल जमा कराना किसी बड़ी चुनौती से कम नहीं होता। इसके पीछे वजह है एम्स परिसर का अव्यवस्थित होना।
यही वजह है कि अब एम्स के ही डॉक्टर ने एक ऐसा मोबाइल फोन एप तैयार किया है, जिसकी मदद से तीमारदार अपने मरीज को लेकर आसानी से संबंधित ओपीडी, लैब या ब्लड बैंक तक पहुंच सकते हैं। हिमाचल के कांगड़ा मेडिकल कॉलेज से एमबीबीएस करने के बाद एम्स में अस्पताल प्रबंधन विभाग में बतौर रेजीडेंट डॉ. नरेंद्र कुमार ने ये एप तैयार किया है।
चिकित्सा क्षेत्र से होने के बावजूद इसके लिए उन्होंने जावा तकनीक का अध्ययन भी किया। अमर उजाला से बातचीत में डॉ. नरेंद्र कुमार ने बताया कि कुछ समय पहले हिमाचल प्रदेश से उनका डॉक्टर दोस्त एक माह की बच्ची को लेकर एम्स आया था। दिनभर अस्पताल में चक्कर लगाने के बाद भी उन्हें काफी समय बर्बाद करना पड़ा। दोस्त की परेशानी को देखकर डॉ. नरेंद्र ने मोबाइल एप बनाने का मन बनाया।
उन्होंने एम्स परिसर में घूमते हुए करीब 400 से ज्यादा फोटो लिए और उन्हें एप के जरिए अपलोड किया। करीब 25 यूएस डॉलर की लागत से गूगल प्ले स्टोर पर उन्होंने 20 एमबी का एम्स इंफॉर्मेशन नाम से मोबाइल एप अपलोड किया, जिसकी अब एम्स प्रबंधन भी सराहना कर रहा है।
एम्स के मरीजों पर सर्वे, बताई समान परेशानी - मोबाइल एप को बनाने से पहले एम्स आने वाले मरीजों पर एक सर्वे भी हुआ। करीब 30 मरीजों से पूछताछ के बाद तैयार सर्वे के अनुसार ज्यादातर । लोगों की परेशानी विभाग, ओपीडी और लैब की जानकारी नहीं मिलना थी।
एप का नया वर्जन भी लाने की तैयारी -
जल्द ही इस एप को लेकर एम्स प्रबंधन अस्पताल परिसर में लोगों को जानकारी देगा। ताकि सभी को इसका लाभ मिल सके। मोबाइल एप में एम्स के विभिन्न लैब, वार्ड, ओपीडी इत्यादि की जानकारी उपलब्ध है। आपातकालीन विभाग का फोन नंबर भी दिया है।
साथ ही एम्स से जिन अस्पतालों में मरीजों को रेफर किया जाता है, उन अस्पतालों की जानकारी भी है। उन अस्पतालों के फोन नंबर भी हैं, जहां कॉल करके तीमारदार बिस्तर इत्यादि की जानकारी ले सकता है। डॉ. कुमार ने बताया कि इस एप का नया वर्जन लाने के लिए वे प्रयास कर रहे हैं। उन्हें अब तक ढेरों सलाह एप के जरिए मिली हैं। जिन पर वे काम कर रहे हैं।
गूगल भी होता फेल, नहीं आते सिग्नल-
एम्स परिसर में जगह-जगह संकरापन होने के कारण एम्स में गूगल फेल साबित होता है। फोन के सिग्नल भी नहीं मिलते। गूगल नेविगेशन यूजर्स को 100 या 200 मीटर की लोकेशन नहीं बता पाता। उदाहरण के तौर पर अगर कोई मरीज एम्स के इमरजेंसी वार्ड में भर्ती है और उसके तीमारदार को ब्लड बैंक भेजा जाता है तो गूगल नेविगेशन पर इसकी जानकारी नहीं मिलेगी।
इसलिए डॉ. नरेंद्र कुमार ने बगैर इंटरनेट के छोटे-छोटे परिसर को भी इस एप में जोड़ा है। उन्होंने बताया कि आने वाले दिनों में बिस्तरों की व्यस्तता, ब्लड बैंक में उपलब्ध ब्लड इत्यादि की जानकारी भी फोन एप पर मिल सकेगी।